लेन - देन सिर्फ वस्तुओं का नहीं होता , यह भावनाओं का भी होता है । आप किसी का सम्मान करते हैं तो बदले में वह आपको स्नेह , संरक्षण और मार्गदर्शन देता है । यह परिवार में बहुत गहरे रूप में होता है , क्योंकि उसका आधार धन - सम्पत्ति नहीं भावनाएं ही हैं । घर में त्याग के बदले आदर मिलता है , प्यार के बदले स्नेह और साथ के बदले साथ । दिवकत तब होती है जब हम हिसाब लगाने बैठते हैं । रिश्तों में हिसाब - किताब के मामले में एक दिलचस्प परंतु दुःखद तथ्य यह है कि हममें अपने योगदान को ज्यादा और प्राप्य को कम आंकने की प्रवृत्ति होती है । यानी रिश्तों के तराजू पर हम हमेशा स्वयं को घाटे में ही पाते हैं । नुकसान का यह अहसास आगे बढ़कर कुछ करने से रोकता है , जो अंततः रिश्तों के लिए बुरा सिद्ध होता है । अव्वल तो घर के मामले में तराजू लाना ही नहीं चाहिए । दूसरी महत्वपूर्ण बात ध्यान रखनी चाहिए कि क़रीबी रिश्तों में हम दे नहीं रहे होते , चुका रहे होते हैं । देना ऐच्छिक हो सकता है , किंतु चुकाना अनिवार्य होता है । दरअसल , हिसाब लगाते वक्त हम अपने दिए को तो बड़े ध्यान से चुनते हैं , पर दूसरों से जो हमें मिला उसे नजरअंदाज कर देते हैं । जैसे- अबोध शिशु भी माता - पिता व परिजनों को अपनी मौजूदगी , मुस्कान और भोली चेष्टाओं से आनंद और सुख देता है । बदले में उसे प्यार व संरक्षण मिलता है । दूसरों के योगदान को कम न आंकें ।
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खुद को भी तो भी तो कुछ दें
जीवन की अनमोल ज्ञान की बातें
अब और धोखा नहीं
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अब और धोखा नहीं |
देने वालों के सामने एक बड़ा ख़तरा दुरुपयोग का होता है । अक्सर देखा जाता है कि जो व्यक्ति सहायक प्रवृत्ति का और उदार होता है , कुछ लोग उससे वह काम भी करा लेते हैं , जो अन्यथा वे ख़ुद भी कर सकते थे । कुछ लोग उसकी चीजों का दुरुपयोग कर लेते हैं । जब देने वाले को इस बात का पता चलता है तो उसके मन में निराशा पनपती है और देने की इच्छा कम होती जाती है । होता यह है कि देने की मानसिकता वाले चूंकि भले लोग होते हैं , सब पर भरोसा करते हैं , इसलिए उन्हें धोखा मिलने की आशंका भी अधिक होती है । इससे बचने के लिए अपनी रणनीति बदलने की सलाह दी जाती है । वैसे भी , कहा ही गया है कि दान सुपात्र को देना चाहिए , फिर वह चाहे धन का दान हो या विद्या का या फिर योगदान । आप वास्तविक जरूरतमंद और दुरुपयोग की चाह रखने वालों के बीच अंतर करना सीखें । समय - समय पर अपनी रणनीति की समीक्षा करते रहें । देखें कि कोई व्यक्ति बार - बार मदद मांगने तो नहीं आ जाता । कोई आपसे सहायता इसलिए तो नहीं मांग रहा है कि वह खुद उस काम को करने से बचना चाहता है । बहरहाल , किसी भी स्थिति में सकारात्मक बने रहें , क्योंकि दुनिया के असंख्य लोगों को वाक़ई आपकी मदद की जरूरत है ।
क्या फ़र्क पड़ जायेगा
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अनमोल ज्ञान की बातें
देने की राह में सबसे बड़ा रोड़ा होता है यह सवाल कि इससे क्या फर्क पड़ जाएगा ! किसी को दो रुपए देने से पहले ही हम सोच लेते हैं कि इससे इसकी जिंदगी तो नहीं बदल जाएगी । फिर हमारा मन उलाहना देता है ' तो फिर तू ही इसकी जिंदगी बदलने की जिम्मेदारी ले ले ! ' फिर मन का ही एक पहलू जवाब देता है- ' मैं ऐसा कर तो लूं , परंतु इससे क्या फ़र्क पड़ जाएगा ! दुनिया में तो ऐसे लाखों लोग हैं , मैं किस - किस का जिम्मा ले सकूँगा । ' यानी ढाक के वही तीन पात ! नतीजतन दो रुपए भी जेब से नहीं निकल पाते । हालांकि अपने लिए फ़िजूलखर्च करते समय हम इतनी दूर तक नहीं देखते , यहां तक कि दुर्व्यसनों के दुष्परिणामों पर भी विचार नहीं करते । इससे उबरने के लिए परिणामों के बारे में जानें । सोचें कि आपके दिए दो रुपयों से पांच बिस्कुट आ सकते हैं । कल्पना करें कि दिनभर से भूखे व्यक्ति के चेहरे पर ये पांच बिस्कुट खाकर कितनी तृप्ति उभर सकती है । या तो असर की कल्पना कर लें या वास्तविक असर जान लें । जैसे- आप कुछ धनराशि नियमित रूप से दान करना चाहते हैं , लेकिन एक - दो साल बाद आपका यह उत्साह कायम नहीं रह पाता । ऐसे में , संस्था में जाकर अपने दान का उपयोग होते देखना , उससे लाभान्वित होने वाले जरूरतमंदों के बारे में जानना , उनके जीवन में आई बेहतरी की कहानियां सुनना प्रेरणास्पद होगा ।
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